Tuesday, February 15, 2011

सोचना जरूरी है
आदमी सोच सकता है,बहुत गहराई से सोच सकता है. जानवर ऐसा नहीं कर पाते. अगर आदमी सोचना बंद कर दे या एकदम कम कर दे तो क्या आदमी भी जानवर जैसा हो जाएगा? बात सोचने की है. सोच पाना और सोच पाना इन दोनों में से कौन सी स्थिति बेहतर है ? दरअसल सोच पाने की अपनी क्समता  पर हमें कुछ ज्यादा ही नाज है. यह जरूरी नहीं कि सोचने कि क्समता होने से ही कोई अपने आप श्रेष्ठ हो जाता हो. आखिर सोचने की क्समता रखनेवाला मनुष्य ही तो बलात्कार भी करता है,अन्य और भी अनेक अपराध सोच-समझ कर ही करता है,जबकि इसके विपरीत  सोचने कि क्समता से वंचित कोई भी जानवर कभी सोच-समझ  कर कोई अपराध नहीं करता. 
फिर भी सोचना जरूरी है. वास्तविकता यह है कि अगर आदमी सोचना बंद कर दे तो उसकी स्थिति जानवर से भी बदतर हो जाएगी. इस बदतर स्थिति को प्राप्त होने से हम बचे रहें इसके लिए जरूरी है कि हम सोचना बंद करें. बुरा काम करने के लिए भी सोचना पड़ता है और अच्छा काम करने के लिए भी सोचना पड़ता है.
जो कुछ जैसा है उसे उसी रंग,रूप और स्वाद में ग्रहण और स्वीकार कर लेने से सोचने की क्समता कम हो जाती है. यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है जो एक पूरी की पूरी सभ्यता और संस्कृति को समूल नष्ट कर सकती है. जो कुछ बाहर से  रहा है उसे छांट-काट-तराश कर,अपने माफिक बना कर हम अपना विकास कर सकते हैं, लेकिन उसे हूबहू आत्मसात कर लें तो हम अपना विनाश करेंगे,और आज यही हो रहा है. आग में हाथ डालने से हाथ जल जाएगा, इस जानकारी की पुष्टि करने के लिए आग में हाथ डालना जरूरी नहीं है. लेकिन सब कुछ आग की तरह सीधा-सच नहीं होता है, फिर आग-आग में भी फर्क होता है. इसलिए जाँच-परख लेने में कोई हर्ज नहीं है. 
लेकिन   इस सबके लिए सोचने की जरूरत है. जिस देश के लोगों ने सोचना बंद कर दिया या दूसरों के सोचने पर अपनी निर्भरता बढ़ा दी,इतिहास गवाह है कि ऐसे देशों ने बार-बार और  लम्बे काल खंड तक गुलामी का अपमान झेला.
सोचने    की जरूरत पर इतनी लम्बी भूमिका बाँधने के पीछे जाहिर कि मेरा कुछ इरादा भी है. इरादा और कुछ नहीं,सिर्फ सोचने का इरादा है. हम सोचें, आप सोचें. हम सबलोग मिलकर सोचें कि आज जो कुछ जैसा दिख रहा है ऐसा क्यों दिख रहा है? सोचने की लगभग बंद और मंद पड़ी प्रक्रिया को आइये हम फिर से जीवित करें. यह हमारी मजबूरी भी है. अपने मस्तिस्क को आराम देकर दूसरो के सोचने से अपना काम चलाने खतरनाक प्रवृत्ति के लक्षण दिखाई पड़ने लगे हैं. .यह प्रवृत्ति बढ़ती गयी तो तो फिर दूसरे ही हमारे लिए सोचा करेंगे और हमारी भूमिका सिर्फ हुकम्बरदार की रह जाएगी  .---------तरित कुमार             



7 comments:

  1. अच्छी शुरुआत।
    शोभनम्।
    स्वागत है आपका
    आइये हिन्दी
    एवं हिन्दी ब्लॉग जगत् को सुशोभित कीजिये
    इसे समृद्ध बनाइये।

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  2. सार्थक विषय, मनन करने योग्य सामग्री

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  3. अच्छा और सार्थक लेख..

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  4. शुभकामनाएं

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  5. इस सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी चिट्ठा जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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